Astrology – धर्म न अफिम है, न चरस है, न भांग न दारू धर्म न मन्दिर है, न मस्जिद, न गुरुद्वार, न गिरिजाघर धर्म न गीता है, न कुरान, न ग्रंथसाहब, न बाईबल धर्म न धूप है न अगरबत्ती धर्म न हरिद्वार है, न मक्का, न रोम, न अमृतसर धर्म न सुब्रत है, न जनेऊ, धर्म न दंडवत है, न हज, न गंगा में डुबकी।
कहते थे – धर्म सत्य है, धर्म ईमान है धर्म प्रेम है धर्म बंधुत्य है’ धर्म का अर्थ मंदिर या मस्ज़िद से नहीं है। धर्म का अर्थ कर्तव्य से है। यदि हर व्यक्ति अपने धर्म का पालन नहीं करेगा तो पुरे समाज का अस्त्तिव संकट में पड़ जायेगा।
बाप का बेट के साथ क्या धर्म है, बेटे का बाप के साथ क्या धर्म है, माँ का बेटे के साथ क्या धर्म है, बेटे का माँ के साथ क्या धर्म है। पति का पत्नि के साथ क्या धर्म है, पत्नी का पति के साथ क्या धर्म है, भाई का भाई से भाई का बहन से बहन से बहन का भाई से क्या धर्म है, सास का बहु से बहु का सास से क्या धर्म है। नौकर का मालिक के साथ, मालिक का नौकर के साथ क्या धर्म है, शिक्षक का शिष्यों के साथ क्या धर्म है, और शिष्यों का शिक्षक के साथ क्या धर्म है, पुलिस का जनता के साथ, जनता का पुलिस के साथ अपने देश के साथ क्या धर्म है, अपने समाज के साथ क्या धर्म है।
ब्राम्हण का धर्म है अज्ञान का नाश करना, क्षत्रिय का धर्म है अन्याय का नाश करना, वैश्य का धर्म है अभाव का नाश करना, शुद्र का धर्म है सेवा करना । अगर हम अपने धर्म को जानकर काम करेगे, तो हम अच्छे लोकांतरो में जन्म लेकर सुख भोगेगे और अगर हम धर्म के विपरीत काम करेगे तो अन्य जंतु जैसे कुत्ते, गाये अदि निच योनियों में डाल दिये जायेंगे। वहा अपने दायरे में पड़े रहेगें उससे आगे नहीं निकल पायेंगे।
धर्म और संप्रदाय अलग अलग चीज है
धर्म की बुनियाद प्रेम है, कारण है, मैत्री है, अहिंसा है।धर्म मुक्त करता है, संप्रदाय बंधन में डालता है। धर्म दिवारे हटाता है। संप्रदाय दिवारे खड़ा करता है। यही कारण है, कि आज मुसलमान तो है। लेकिन मोहम्मद साहब का भाईचारा कहाँ है? जैन तो है, किंतु भगवान महावीर की अंहिसा और मैत्री कहाँ है? बौद्ध तो है, पर भगवान बुध्द की करुणा कहाँ है? सनातनी तो है, पर भगवान राम की मर्यादा कहाँ है? संप्रदाय के केवल लेबल लगे है, जीवन मे धर्म कहाँ ही?