BPSC Topper Sunil Kumar Saraf Success Story : बिहार के एक छोटे से गांव से शुरू हुआ यह सफर आज हर किसी के लिए प्रेरणा बन गया है। BPSC की परीक्षा में टॉपर बनने वाले इस शख्स ने 19 साल तक हार नहीं मानी और आखिरी मौके पर सफलता हासिल की। उनके पिता और रिश्तेदार कहते थे कि वह पिता का पैसा बर्बाद कर रहा है और कभी एग्जाम नहीं निकाल पाएगा। उम्र बढ़ती गई, मन मारकर शादी भी करनी पड़ी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार, BPSC सक्सेस स्टोरी में उनकी मेहनत रंग लाई और आज वे बिहार के युवाओं के लिए मिसाल बन गए हैं। आज हम आपको उनकी पूरी कहानी, उनकी मेहनत, और सफलता के टिप्स बताएंगे, जो आपको भी मोटिवेट करेगा।
BPSC Topper Sunil Kumar Saraf Success Story
सक्सेस स्टोरी | सुनील कुमार सर्राफ की 19 साल की मेहनत और BPSC में सफलता। |
परेशानी | रिश्तेदारों के ताने, शादी का दबाव, और बार-बार असफलता। |
पत्नी का योगदान | पत्नी ने पहले BPSC क्रैक किया और सुनील को हौसला दिया। |
सफलता | 60-62वीं BPSC में 320वीं रैंक, अब अंचल अधिकारी। |
BPSC में 19 साल बाद मिली सफलता
बिहार के सीतामढ़ी के सुनील कुमार सर्राफ की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहा है। सुनील ने साल 2000 में BPSC की तैयारी शुरू की थी, लेकिन सफलता उन्हें 19 साल बाद 2019 में मिली। इस लंबे सफर में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रिश्तेदारों के ताने, शादी का दबाव, और बार-बार असफलता ने उन्हें तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी पत्नी ने भी उनका पूरा साथ दिया और खुद भी BPSC में अफसर बन गईं। आखिरकार, सुनील ने 60-62वीं BPSC परीक्षा में सफलता हासिल की और आज वे अंचल अधिकारी हैं।
गरीबी में बीता बचपन, सरकारी स्कूल से की पढ़ाई
सुनील कुमार सर्राफ का बचपन बहुत गरीबी में बीता। उनके पिता छोटे-मोटे काम करते थे, जैसे खेती, किराना दुकान, और सब्जी बेचना। सुनील ने अपनी शुरूआती पढ़ाई गांव के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में की, लेकिन पांचवीं कक्षा के बाद पैसे की तंगी के कारण उन्हें सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। 1998 में उन्होंने गांव के सरकारी हाई स्कूल से 10वीं पास की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे सीतामढ़ी चले गए। सुनील बताते हैं कि 12वीं तक उनके मन में कोई बड़ा सपना नहीं था, क्योंकि उनके परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि वे बड़े सपने देख सकें।
सिविल सर्विसेज का सपना और पटना का सफर
12वीं पास करने के बाद सुनील सोच में पड़ गए कि अब आगे क्या करना है। सीतामढ़ी में कुछ लड़कों को सिविल सर्विसेज की तैयारी करते देखकर उनके मन में भी यह ख्याल आया कि वे भी ऐसा कुछ कर सकते हैं। उसी दौरान उनके चचेरे भाई ने उन्हें सलाह दी कि BPSC की तैयारी करनी चाहिए। उस समय तक उनके पिता ने गांव में एक छोटा सा व्यवसाय शुरू कर लिया था, जिससे परिवार की हालत थोड़ी बेहतर हो गई थी। परिवार की मदद से सुनील पटना आ गए और ग्रेजुएशन के साथ-साथ BPSC की तैयारी शुरू कर दी।
बार-बार असफलता, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
सुनील ने अपनी तैयारी के दौरान कई मुश्किलों का सामना किया। उन्होंने 2008 में पहली बार BPSC परीक्षा दी, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा (PT) भी पास नहीं कर पाए। उस समय BPSC हर साल परीक्षा आयोजित नहीं करता था, जिससे उनकी निराशा और बढ़ गई। 2011 में उन्होंने 53वीं-55वीं BPSC परीक्षा दी और इस बार इंटरव्यू तक पहुंचे, लेकिन 9 नंबर से उनका चयन नहीं हुआ। इस असफलता ने उन्हें बहुत तोड़ दिया। गांव के लोग ताने मारने लगे कि 10 साल से पढ़ाई कर रहा है, पिता का पैसा बर्बाद कर रहा है। इन बातों ने सुनील को अंदर तक हिला दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
शादी का दबाव और पत्नी का साथ
सुनील की उम्र बढ़ती जा रही थी, और परिवार वालों ने उनकी शादी तय कर दी। सुनील शादी के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि शादी के बाद उनका सपना अधूरा रह जाएगा। लेकिन उम्र के दबाव में उन्हें शादी करनी पड़ी। शादी के बाद उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। उनकी पत्नी एक सरकारी टीचर थीं और उन्होंने सुनील का पूरा साथ दिया। पत्नी ने भी BPSC की तैयारी शुरू की। दोनों ने साथ मिलकर 53वीं-55वीं परीक्षा दी, लेकिन दोनों का चयन नहीं हुआ। इस दौरान लोग ताने मारते थे कि पत्नी कमाती है और सुनील घर पर बैठा है। इस सामाजिक दबाव की वजह से सुनील गांव भी नहीं जाते थे और पटना के एक किराए के कमरे में रहकर तैयारी करते रहे।
पत्नी बनीं अफसर, सुनील को मिली प्रेरणा
56वीं-59वीं BPSC परीक्षा में सुनील और उनकी पत्नी ने फिर कोशिश की। इस बार उनकी पत्नी का चयन बिहार फाइनेंस सर्विस में हो गया, लेकिन सुनील पास नहीं हो पाए। पत्नी की सफलता से सुनील को खुशी तो हुई, लेकिन खुद की असफलता ने उन्हें उदास कर दिया। उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था कि पत्नी अफसर बन गईं और वे पीछे रह गए। यहीं से उनके अंदर सफलता की आग भड़क उठी। सुनील ने ठान लिया कि अब हर हाल में BPSC पास करना है। उन्होंने अपनी कमियों को ढूंढा, पुरानी गलतियों से सीखा, और दिन-रात मेहनत शुरू कर दी।
आखिरी मौके पर मिली बड़ी सफलता
60-62वीं BPSC परीक्षा सुनील के लिए आखिरी मौका थी। इस बार उनकी मेहनत रंग लाई और उनका चयन हो गया। उन्होंने 320वीं रैंक हासिल की और उनकी पहली पोस्टिंग रेवेन्यू ऑफिसर के रूप में हुई। इसके बाद वे सीवान और शिवहर में अंचल अधिकारी रहे। आज वे पटना के फुलवारी शरीफ में अंचल अधिकारी के पद पर तैनात हैं। सुनील की यह सक्सेस स्टोरी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो बार-बार असफल होने के बाद हिम्मत हार जाता है।

BPSC टॉपर की सफलता के टिप्स
बीपीएससी टॉपर सुनील कुमार सर्राफ ने अपनी सफलता के कुछ आसान टिप्स बताए हैं:
सही रणनीति | सिलेबस को अच्छे से समझें और हर टॉपिक को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटें। |
समय का उपयोग | रोज 6-8 घंटे पढ़ें, और हर हफ्ते रिवीजन करें। |
पुरानी गलतियां | पिछले अटेंप्ट की गलतियों को समझें और उन्हें सुधारें। |
आत्मविश्वास | खुद पर भरोसा रखें, नकारात्मक बातों को नजरअंदाज करें। |
टेस्ट सीरीज | मॉक टेस्ट दें, ताकि एग्जाम का डर खत्म हो। |
बिहार के युवाओं के लिए प्रेरणा
यह कहानी बिहार के उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो BPSC या किसी भी बड़ी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। बिहार में सरकारी नौकरी का सपना हर युवा देखता है, लेकिन रास्ते में कई मुश्किलें आती हैं। बीपीएससी टॉपर सुनील कुमार सर्राफ की यह कहानी बताती है कि अगर आप मेहनत करते रहें और हार नहीं मानें, तो एक दिन सफलता जरूर मिलती है। उनकी कहानी से यह भी सीख मिलती है कि उम्र या हालात चाहे जैसे हों, अगर आपका लक्ष्य साफ है, तो आप उसे हासिल कर सकते हैं।
निष्कर्ष
सुनील कुमार सर्राफ BPSC टॉपर की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करना चाहता है। 19 साल की मेहनत, बार-बार असफलता, और रिश्तेदारों की बातों को झेलने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आखिरी मौके पर मिली उनकी सफलता यह साबित करती है कि मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। अगर आप भी BPSC की तैयारी कर रहे हैं, तो इस कहानी से प्रेरणा लें, सही रणनीति बनाएं, और अपने सपनों को पूरा करें।