सॉरी अतुल! तुम पुरुष जो थे! पत्नी की प्रताड़ना से तंग आकर लगाई फांसी, न्याय मिलना बाकी
मृत्यु से पहले अतुल सुभाष ने 22 पन्ने का नोट और 80 मिनट का वीडियो बनाया था. यह सिर्फ एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं है, बल्कि व्यवस्था, समाज, कानून और न्याय व्यवस्था की सड़ांध का जीवंत दस्तावेज है। पुलिस को उनके कमरे में एक प्लेकार्ड भी मिला, जिस पर लिखा था—जस्टिस इज ड्यू। क्या न्याय मिलेगा?
Sorry Atul! You were a man: बेंगलुरु पुलिस ने अतुल सुभाष के कमरे में घुसते ही एक तख्ती पर ये शब्द लिखे हुए पाया. इंसाफ बाकी है, या न्याय बाकी है. पूरे देश को अतुल सुभाष की आत्महत्या ने झकझोर दिया है. 24 पेज का अंतिम नोट मरने से पहले 80 मिनट का वीडियो रिकॉर्ड. हर पृष्ठ पर दर्द, हर शब्द में सिसकी. आह, शब्द थे. यह एक सुसाइड नोट नहीं है; यह हमारे सिस्टम का एक जीवंत दस्तावेज है, जो हमारे कानूनों, न्यायपालिका और बेइंतहा क्रूरता की हद तक सौदेबाजी में बदल गया है.
अतुल सुभाष आज सुबह निःशब्द था जब उसके एक अप्रिय दोस्त ने कहा कि ये बहुत भयानक है. आप कुछ भी नहीं कहते. देश अतुल सुभाष की मौत से हिला हुआ है. सोशल मीडिया पर भारी रोष है. डाइनिंग टेबल से चाय के ठेले तक यही चर्चा होती है. यह सब घूम फिरकर होता है.
हम आपकी जानकारी के लिए बता दे कि, 34 वर्षीय अतुल सुभाष एक निजी कंपनी में काम करते थे. पत्नी निकिता सिंघानिया की दुर्व्यवहार से तंग आकर उन्होंने आत्महत्या कर ली ज़ाहिर है, आत्महत्या एक समाधान नहीं है,
लेकिन वे सुभाषी उत्पीड़न से इतने टूट चुके थे कि जिंदगी और इंसाफ की उम्मीद छोड़ दी थी. मरने से पहले लिखें 24 पेज के सुसाइड नोट और लगभग डेढ़ घंटे के अपने अंतिम वीडियो में उन्होंने जो कुछ कहा है, वह किसी मजबूत दिल को भी दुखी कर देगा.
सुभाष ने यह भी गुजारिश की कि मरने पर उनकी पत्नी या उसके परिजनों को उनके शव के पास नहीं आने दिया जाए. यह भी कहा गया कि दोषियों के परिजनों को उनकी अस्थियों को प्रवाहित नहीं करना चाहिए जबतक उन्हे सजा नहीं मिल जाती.
सुभाष ने अपनी आखिरी इच्छा में ये भी कहा कि अगर उनका उत्पीड़न करने वाले दोषी नहीं पाए जाते तो उनकी अस्थियों को अदालत के सामने बह रहे गटर में फेंक दें, न्याय में उनका भरोसा इतना हिल गया था. उसने अपनी मौत से पहले ट्विटर पर डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क को टैग करके उनसे इंसाफ की मांग की थी.
हम आपको बता दें कि, देश भर में व्याप्त क्रोध के बीच कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी हैं. संसद में जनता के किसी भी सदस्य ने इस विषय पर कुछ कहा? सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट ने क्या सोचा? संयोग से, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की.
यद्यपि सोशल मीडिया पर आक्रोश व्याप्त है, क्या यह एक स्वचालित भीड़ ने किया? क्या किसी संस्था ने न्याय के लिए सड़क पर आवाज उठाई? जवाब नहीं है.....। इसके मूल में वह पुरुष था.
कानून के सिद्धांत न्यूट्रल नहीं हैं. कल्पना कीजिए कि क्या होता अगर स्थिति इसके विपरीत होती? पति तुरंत जेल में होता अगर पत्नी ने हिंसा का स्पष्ट "प्रमाण" देकर आत्महत्या की होती. पति और उसका पूरा खानदान पकड़ा जाता? एफआईआर को 24 घंटे हो चुके हैं, लेकिन पुलिस ने अभी तक किसी आरोपी को नहीं पकड़ा है.