Worshipping Rules : बिना नहाए पूजा करना सही या गलत? जानें क्या हैं धर्म शास्त्र का नियम
Worshipping Rules: शास्त्रों में स्नान को आंतरिक और बाहरी दोनों को शुद्ध करने का साधन माना गया है. माना जाता है कि स्नान करने से शरीर और मन पवित्र हो जाते हैं, इसलिए पूजा अधिक प्रभावशाली और फायदेमंद होती है.
Worshipping Rules: हिंदू धर्म में पूजा और आराधना शुद्धता और पवित्रता से जुड़ी हुई हैं. शास्त्रों ने पूजा से पहले स्नान करना शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिए अनिवार्य माना है. बिना स्नान के पूजा करना भी कुछ हालात में स्वीकार्य है. आइए हमारे इस लेख के माध्यम से जानते हैं इससे जुड़ी पूरी जानकारी.
पूजा से पहले स्नान क्यों जरूरी है?
शरीर और मन की शुद्धता का संकेत : शास्त्रों में स्नान को आंतरिक और बाहरी दोनों को शुद्ध करने का साधन माना गया है. माना जाता है कि स्नान करने से शरीर और मन पवित्र हो जाते हैं, इसलिए पूजा अधिक प्रभावशाली और फायदेमंद होती है.
पूजा का समग्र लाभ : स्नान के बिना पूजा करना अपूर्ण माना जाता है और इसका पूरा फल नहीं मिलता. स्नान करने के बाद पूजा करने से आप आत्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता मिलती है.
सांसारिक अशुद्धि को दूर करना : रोजमर्रा के कार्यों और बाहरी वातावरण से जुड़े रहने वाले व्यक्ति संक्रमण कर सकते हैं. इन अशुद्धियों को स्नान से दूर करने का एक उपाय है.
बिना स्नान के पूजा कब कर सकते हैं?
बीमारी या विशिष्ट हालात में : यदि कोई बीमार है और स्नान नहीं कर सकता, तो शुद्ध मन से पूजा करना भी मान्य है. ऐसे में आप मूर्तियों को स्पर्श किए बिना मंत्र जाप या ध्यान कर सकते हैं.
मन की पूजा : बिना स्नान के मूर्ति को छूते हुए मानसिक रूप से ईश्वर का ध्यान, प्रार्थना और मंत्र जाप करना भी स्वीकार्य है.
शास्त्रों में सुझाए गए उपाय
शास्त्र कहते हैं कि शास्त्रों में "अपवित्रः पवित्रो वा..." मंत्र का जाप करने से आत्मा शुद्ध होती है यदि स्नान संभव नहीं है। यह मंत्र व्यक्ति को आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से शुद्ध करता है।
मंत्र
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
विशेष ध्यान देने योग्य बातें
स्नान के बाद मूर्ति स्पर्श करें: देवताओं की मूर्ति को छूने से पहले स्नान करना चाहिए.
विशेष अवसरों पर नियमों का पालन: स्नान का महत्व त्योहारों, व्रतों और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान और भी बढ़ जाता है.
मन की शुद्धता: मन की शुद्धता तन की शुद्धता की तरह महत्वपूर्ण है.